भाषा विकार से जुड़े मिथक – जानिए इनका वास्तविक सच

भाषा विकार या बोलने में समस्या एक बहुत ही गंभीर रोग है। यह किसी भी उम्र के लोगो को अपना चपेट में ले सकती है। पर ज्यादातर यह शिशु के जन्म से ही या शुरूआती कुछ वर्षों में दिखना शुरू हो सकता है। अक्सर लोग जानकारी की कमी के चलते भाषा विकार से जुड़े मिथक या इनके सम्बन्ध में प्रचलित गलतफहमियों का शिकार हो जाते है, और खुद भी इन्हे फ़ैलाने का काम करते है।

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तो चलिए अब इस विषय पर अधिक जानकारी प्राप्त करते है और जानते है की भाषा विकार से जुड़े मिथक क्या है? और यह प्रचलित क्यों है? साथ ही जानिए की इन्हे फैलने से कैसे रोका जाये?

इस लेख में हम चर्चा करेंगे :

भाषा विकार से जुड़े मिथक क्या है?

भाषा विकार के मिथक जानने से पहले आपको यह जानना होगा की आखिर भाषा विकार क्या है? स्पीच डिसऑर्डर अथवा बोलने में समस्या बहुत ही जटिल रोग है। जो सामान्यतः दवाओं के प्रयोग से ठीक नहीं होता है। इसे दूर करने के लिए निरंतर अभ्यास की जरुरत होती है। स्पीच थेरेपी ही इसका एकमात्र सफल उपाय है। यह बोलने में कठिनाई की समस्या को दूर करने में पीड़ित व्यक्ति की सहायता करती है।

बोलने में समस्या या स्पीच डिसऑर्डर निम्नलिखित प्रकार के होते है –

भाषा विकार से जुड़े मिथक ऐसी गलत अवधारणाएं (गलतफहमियां) है जो बिना किसी आधार के ही समाज में प्रचलित है। जब कोई बच्चा जन्म लेता है, तो अक्सर लोग बच्चे के माता-पिता को इन सुनी सुनाई बातो या भ्रांतियों के बारे में बताते है। इनमें से क्या सच है? और क्या झूठ? यह तो समय आने पर ही पता चलता है। पर आप निराश न हों क्योंकि हम आपको इन सभी तथ्यों की वास्तविक सच्चाई बताने जा रहे है।

भाषा विकार से जुड़े मिथक कैसे फैलते है?

भाषा विकार से जुड़े मिथक फैलने के पीछे वैसे तो बहुत सी वजहें हो सकती है। पर इन सभी में सबसे बड़ी और खतरनाक वजह है जानकारी की कमी, जी हाँ। अक्सर लोग इन ग़लतफ़हमियों के पीछे की वास्तविक सच्चाई को जानने की कोशिश ही नहीं करते है। और जो कुछ भी तथ्य किसी व्यक्ति के द्वारा सुनते है उसे ही सच मान लेते है। यही वजह है की ऐसी गलतफहमियां समाज में पनपती रहती है।

अक्सर इन गलत तथ्यों या मिथकों को फैलाने वाले ऐसे लोग होते है, जिनपर हम भरोसा करते है। जैसे आपके कोई करीबी रिश्तेदार या परिवार के अन्य सदस्य भी यह काम कर सकते है। हालाँकि इसमें उन लोगों की गलती नहीं होती है। क्योंकि वह लोग तो बस आपसे जानकारी साझा करने की कोशिश करते है। पर कोई भी जानकारी बिना सच जाने दूसरों को बताना ही इनके फैलने का मुख्य कारण है।

भाषा विकार से जुड़े मिथक क्यों प्रचलित है?

भाषा विकार से जुड़े मिथक प्रचलित होने का सबसे आम कारण है वास्तविक सच का पता न होना। चूँकि यह जानकारी आपके करीबी लोगों द्वारा प्रदान की जाती है। इसलिए अक्सर लोग इनकी जाँच-पड़ताल नहीं करते और इन्हे सही मान लेते है। क्योंकि इन्हे फैलाने वाले व्यक्ति भी अनजाने में ही ऐसा करते है। वह ये सोचकर ही जानकारी आपको प्रदान करते है की इसमें आपकी भलाई होगी, पर ऐसा होता नहीं है।

इनके प्रचलित होने की एक अन्य वजह यह भी है की लोग ऐसी बातों से डरते है। क्योंकि यह तथ्य उनके दिमाग में जगह बना लेते है। और इन तथ्यों से सम्बंधित कोई घटना होने पर वह उसे रोकने के लिए यह जानकारी दूसरों को प्रदान करते है। कभी-कभी आधी अधूरी जानकारी को पूरा करने और इसे रोचक बनाने के लिए भी लोग अपनी तरफ से कुछ अतिरिक्त तथ्य इनमें जोड़ देते है जो की पूरी तरह मिथक होता है।

भाषा विकार से जुड़े मिथक कौन से है?

अब आप यह तो जान ही गए होंगे की भाषा विकार क्या है और इस से जुड़े मिथक क्यों समाज का हिस्सा बन गए है? तो चलिए अब आपको बताते है की बोलने में समस्या से जुड़े यह तथ्य कौन से है? साथ ही यह भी जानेंगे की इनमें क्या मिथक है और क्या वास्तविक सच?

यह सभी प्रचलित तथ्य और उनकी सच्चाई निम्नलिखित है –

1. इस उम्र में बच्चों के साथ यह होता ही है?

मिथक : अक्सर माता-पिता यह सोचते हैं कि बहुत से बच्चे हकलाते या तुतलाते है। अथवा बच्चा शब्दों का उच्चारण ठीक से नहीं करता है, तो यह सामान्य है। इसलिए आम धारणा यह है कि यह समस्या उम्र बढ़ने के साथ अपने आप दूर होती जाएगी।

सच्चाई : हालाँकि ऐसा नहीं है कि यह नहीं हो सकता है। कई बच्चे हकलाना बंद कर सकते है, और उसकी भाषा भी स्पष्ट हो जाती है। लेकिन समय के भरोसे बैठने की जगह किसी चिकित्सक से परामर्श करना उचित है। क्योंकि यदि विकार स्थायी है तो चिकित्सा व अभ्यास शुरू करने में देर नहीं होनी चाहिए। क्योंकि भाषा विकास में देरी होने से बच्चे के पढ़ने और लिखने की योग्यता पर भी विपरीत असर होगा जो बच्चे के सम्पूर्ण विकास और भविष्य को प्रभावित करेगा।

2. बच्चा जाँच-परिक्षण से गुजरने के लिए बहुत छोटा है?

मिथक : अक्सर बहुत से माता-पिता यह सोचते हैं कि उनका बच्चा अभी बहुत छोटा है इसलिए उन्हें किसी चिकित्सीय जाँच-परीक्षण के लिए भेजना जल्दबाजी होगी। और उन्हें बच्चे के थोड़े बड़े होने या सही उम्र का इन्तजार करना चाहिए।

सच्चाई : हालाँकि ये मान्यताएं बिलकुल अवैज्ञानिक और गलत हैं। क्योंकि बहुत से अस्पतालों में बच्चों में श्रवण हानि और जन्मजात बहरापन रोकने के लिए श्रवण हानि परीक्षण किये जाते हैं। जबकि वे बच्चे सिर्फ कुछ दिन के होते हैं। इसलिए भाषा विकार की जाँच में देरी नहीं करनी चाहिए। यह स्पीच थेरेपिस्ट नवजात शिशुओं की जाँच के लिए प्रशिक्षित होते हैं। वह बच्चों में भाषा विकारों की जांच करते हैं और बच्चे को उचित चिकित्सीय देखभाल और टीकाकरण द्वारा लाभ प्रदान करते है।

3. लड़कियों की तुलना में लड़के देरी से बोलते हैं?

मिथक : अक्सर लोग यह मानते है की लड़कियों की तुलना में लड़के बहुत बाद में शब्दों को बोलना शुरू करते हैं, भले भी वह सामान उम्र के हों।

सच्चाई : हालाँकि आप मानो या न मानो, पर यह एक सच है। यह एक बहुचर्चित तथ्य है कि लड़कियां लड़कों के बोलना शुरू करने से पहले ही बोलने लगती हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि बोलने का परीक्षण करने में देरी करनी चाहिए। हालांकि, एक तथ्य यह भी है कि चूंकि लड़कियां पहले परिपक्व होती हैं। इसलिए वे लड़कों की तुलना में तेजी से अन्य कौशल भी हासिल करती हैं।

परन्तु यदि माता-पिता को यह लगता है कि उनके लड़के के बोलना शुरू करने में कुछ देरी हो रही है। तो उन्हें समान उम्र के लड़कों से तुलना करनी चाहिए। ऐसे दूसरे लड़कों के बोलने के कौशल की तुलना करने पर जिन्होंने बोलना शुरू किया है, बच्चे के माता पिता को मदद मिलेगी। जिसके आधार पर यह स्पष्ट हो जायेगा की यह सामान्य है या बच्चा वास्तव में इस समस्या से ग्रस्त है।

4. बच्चा बोल नहीं रहा है तो वह ज़िद्दी या आलसी हैं?

मिथक : कई बार बच्चों के माता-पिता का यह मानना होता है कि बच्चे के भाषा कौशल के विकास में देरी इसलिए होती है क्योंकि बच्चा जिद्दी या आलसी है और इसलिए वह ज्यादा बात नहीं करता है।

सच्चाई : यह बहुत सामान्य सी बात है कि कोई बच्चा अपनी उम्र के समूह के अन्य बच्चों की भाषा स्पष्ट होने के बाद भी अपनी बच्चे जैसी बोली में बोलना जारी रखता है। इसलिए माता-पिता को लगता है कि उनका बच्चा जिद्दी या आलसी है। यदि बच्चा शब्द का गलत उच्चारण करते हैं। तो यह बच्चे जिद्दी या आलसी नहीं है। बल्कि संभावना यह है कि बच्चे को चिकित्सकीय रूप से “स्वर संबंधी विकार” हो सकता है इसकी पुष्टि के लिए बच्चे को ध्यान से देखें या चिकित्सक से परामर्श करें।

5. बच्चे का स्कूल जाना शुरू करने तक इंतजार करना चाहिए?

मिथक : कभी कभी कुछ माता-पिता वाक् चिकित्सक के पास जाने में देरी करते हैं। और यह उम्मीद करते हैं, कि जब उनका बच्चा स्कूल में शामिल हो जायेगा तो उसके बाद बोलना शुरू कर देगा।

सच्चाई : ऐसे माता-पिता को जल्दी से जल्दी चिकित्सक या स्पीच थेरेपिस्ट से परामर्श करना चाहिए। क्योंकि ऐसे बच्चों की स्पीच थेरेपी शुरू करने में देरी होने से यह बच्चे के भविष्य को प्रभावित कर सकती है। यदि बच्चे में वाक् विकार या स्पीच डिसऑर्डर है, तो बच्चे को स्पीच थेरेपी की गतिविधियों में देरी से शामिल होने पर पढ़ने और लिखने की क्षमता विकसित करने में भी देरी होगी।

और यह देरी बच्चे की शिक्षा और अच्छे रोजगार प्राप्त करने की संभावना को भी विपरीत रूप से प्रभावित करेगा। क्योंकि स्पीच थेरेपी के अंतर्गत भाषा कौशल विकसित करने के अभ्यास शुरू करने में जितनी अधिक देरी होगी, बच्चे को भी वापस सामान्य स्थिति में लाने में चिकित्सक को उतना ही अधिक समय भी लगेगा।

6. मानसिक रूप से मंद बच्चों में भाषण विकार सामान्य है?

मिथक : यह एक बेहद आम धारणा है कि मानसिक रूप से मंद बच्चों में वाणी विकार भी होता ही है। हालाँकि यह सबसे अधिक प्रचलित धारणा है जो की पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है।

सच्चाई : यह धरना बिलकुल ही गलत है यह जरुरी नहीं की मंदबुद्धि बालक भाषा बोल नहीं सकते है। और तो और अगर बच्चे को अन्य समस्याएं भी हैं, तो भी यह आवश्यक नहीं है कि यह समस्याएं उनकी भाषा को भी प्रभावित करेगी। क्योंकि यह एक ज्ञात तथ्य है कि कम बुद्धि वाले बच्चों में असाधारण संवाद शक्ति और विदेशी भाषा बोलने तक के कौशल होते हैं।

यह स्थिति चिकित्सकीय सन्दर्भ में “चैटबॉक्स सिंड्रोम” के रूप में जानी जाती है। और ऐसे बच्चे को खुद को व्यक्त करने के लिए स्पीच लैंग्वेज पैथोलोजिस्ट द्वारा बहुत अच्छी तरह से प्रशिक्षित किया जा सकता है। भले ही वे मानसिक रूप से मंद होते हैं फिर भी वह बेहतर प्रदर्शन करते है।

भाषा विकार से जुड़े मिथक कैसे रोकें?

इस प्रकार के मिथकों को रोकने के लिए यह बेहद जरूरी है की आप तुरंत इन पर भरोसा न करें। अपनी समझ-बूझ से काम लें और इन सभी प्रचलित तथ्यों का एक ही बार में समर्थन न करें। साथ ही इन्हे किसी अन्य व्यक्ति को बताने से पहले इनकी सत्यता की जाँच अवश्य कर लें। जिससे सिर्फ सही जानकारी लोगों तक पहुंचे। और कोई ग़लतफहमी लोगों और उनके मासूम बच्चों को अपना शिकार न बनाये।

किसी तथ्य की सत्यता की जांच करने का सबसे अच्छा तरीका है की आप किसी विशेषज्ञ अथवा स्पीच थेरपिस्ट से इस तथ्य की चर्चा करें। क्योंकि एक पेशेवर चिकित्सक ही सही तथ्यों को आपके सामने लाकर गलतफहमियों को दूर कर सकता है। क्योंकि यह बेहद जरूरी है की समाज में फैली इन भ्रांतियों को दूर किया जाये। जिससे बच्चों को कोई भाषा विकार होने पर उचित समय पर उनका इलाज किया जा सकें।

बच्चों की उम्र अनुसार भाषा विकास

बच्चे अपनी उम्र के एक सामान्य चरण पर पहुँच कर बोलचाल के कुछ विशेष व्यवहार प्रदर्शित करते है। हमारे द्वारा प्रदर्शित तथ्य बच्चों के अनुमानित भाषा विकास के चरणों को व्यक्त करते है। और आपको यह जानने में मदद करते है की बच्चा सही क्रम में अपनी भाषा का विकास कर रहा है या नहीं? इससे माता-पिता को यह सुनिश्चित करने में भी मदद मिलेगी कि बच्चे को किसी चिकित्सीय जाँच की आवस्यकता है या नहीं?

उम्र अनुसार भाषा विकास के तथ्य निम्नलिखित है –

  • जन्म के समय : बच्चे का रोना आम है इसमें मैटरनिटी हॉस्पिटल के डॉक्टर आवश्यक जांच करेंगे और प्रीनेटल हियरिंग चेक पर जोर देते हैं।
  • 2 से 3 महीने : इसमें बच्चे का रोना अलग होता है, और बच्चा माता-पिता की बात के जवाब में कुछ मनभावन आवाज भी निकालता है।
  • 3 से 4 महीने : बच्चा लगातार बोलने की कोशिश करता है। जिससे लगता है, कि वह अपने आप से बात कर रहे हैं।
  • 5 से 6 महीने : ऐसे बच्चों की आवाज़ थोड़ी लयबद्ध हो जाती है। और वे शब्दों को बोलने की कोशिश करते है।
  • 6 से 10 महीने : इस उम्र के बच्चे प्रश्नों के उत्तर में कुछ प्रतिक्रिया भी करते हैं। जैसे कि उत्तर देते समय चेहरे के भाव प्रदर्शित करते हैं।
  • 11 से 12 महीने : इस उम्र में बच्चे शब्दों में “मा”, “पा” जैसे नामों को पहचानना शुरू करता है। कुछ शब्दों को दोहराते भी है।
  • 13 से 18 महीने : इस उम्र में बच्चा लगभग 25 शब्दों का उपयोग करता है। और अधिक नाम सीखता है, साथ ही कुछ सरल निर्देशों का पालन भी करता है।

यह जरुरी है की माता-पिता को प्रचलित मिथकों और मान्यताओं से अधिक किसी पेशेवर चिकित्सक पर भरोसा करना चाहिए। पुराने समय में प्रचलित घरेलू उपचार भले ही पूरी तरह से गलत न भी हों। लेकिन चिकित्सा विज्ञान विकास का एक लंबा सफर तय कर चुका है। और नई तकनीकें और स्पीच थेरेपी तकनीक बेहतर हैं और बच्चे को जल्दी सामान्य बनाने में मदद करती हैं।

स्पीच थेरेपी से बोलने में लाभ

सभी माता-पिता आमतौर पर अपने बच्चों के प्रति सुरक्षात्मक होते हैं। और सामाज में अपने बच्चों की बदनामी होने से बचाने के कारण किसी भाषा चिकित्सक का सहयोग लेने का फैसला नहीं कर पाते हैं। हालाँकि अब इंटरनेट के आने और डॉक्टरों के ऑनलाइन परामर्श देने जैसी सुविधाओं ने यह संभव कर दिया है कि माता पिता को बच्चों के लिए स्पीच थेरेपी क्लिनिक में आए बिना आराम से घर पर ही चिकित्सा और सुविधाएँ प्रदान की जा सकती है।

स्पीच थेरेपी द्वारा बच्चों को बोलने में कठिनाई, शब्दों के उच्चारण में समस्या, बोली बंद होना, मौखिक अप्रेक्सिया, ध्यान अभाव अतिसक्रियता विकार, ऑटिज्म, हकलाना और तुतलाना जैसी कई प्रकार की भाषा सम्बन्धी समस्याओं में लाभ प्रदान किया जा सकता है। इसके लिए चिकित्सक बच्चे की सम्पूर्ण जाँच करके, चिकित्सा की उचित पद्धतियों का इस्तेमाल करता है। जिससे बच्चा अन्य बच्चों की तरह ही सामान्य रूप से बोलने, पढ़ने, और लिखने में सक्षम हो जाता है।

निष्कर्ष व परिणाम

पूरी दुनिया भर के सभी समुदायों की अपनी-अपनी मान्यताएं होती हैं। यह मान्यताएं एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक निरंतर कई वर्षों से चली आ रही हैं। हालाँकि यह कुछ समाजों में बहुत अधिक प्रचलित है। जहां कुछ विषयों पर स्वतंत्र रूप से चर्चा नहीं की जा सकती है, और जहाँ शिक्षा का स्तर भी कम है। ऐसे में इन बच्चों में भाषण संबंधी विकार होना आम हैं। क्योंकि यहाँ माँ से बेटी को इन तथ्यों लिए सुझाव दिए जाते हैं।

जिनमें कुछ तो वैज्ञानिक रूप से सिद्ध होते हैं। लेकिन कुछ तथ्य सिर्फ गलतफहमी ही पैदा करते हैं। और यह बच्चे के स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक हैं। इसलिए माता-पिता को जागरूक बनना चाहिए जिससे वे लक्षणों का जल्दी पता लगा सकें। और सही समय पर स्पीच थेरेपिस्ट से परामर्श कर सकें जिससे बच्चों के लिए स्पीच थेरेपी जल्दी शुरू हो सकें।

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